जैन धर्म के कुल 24 तीर्थंकर बताये गए हैं। जो धर्म का प्रवर्तन करते हैं। 1. श्री ऋषभनाथ- श्री ऋषभदेव आदिनाथ जी के द्वारा ही इस धर्म का प्रारम्भ हुआ था। ऋषभदेव के बारे में ऋग्वेद में बताया गया है। अर्थात इससे पता चलता है कि वेदों से पहले जैन धर्म का अस्तित्व था। इनका …
Jainism
बौद्ध धर्म में नैतिकता (Ethics in Buddhism) –बौद्ध नैतिकता में मनुष्य द्वारा मनमाने ढंग से स्वयं के उपयोगितावादी उद्देश्य के लिये बनाए गए मानक नहीं हैं।मानव निर्मित कानून और सामाजिक रीति-रिवाज बौद्ध नैतिकता का आधार नहीं है।बौद्ध नैतिकता की नींव बदलते सामाजिक रीति-रिवाजों पर नहीं, बल्कि प्रकृति के अपरिवर्तनीय कानूनों पर रखी गई है।बौद्ध धर्म …
१. अहिंसा : जीवन का पहला मूलभूत सिद्धांत देते हुए भगवान महावीर ने कहा है ‘अहिंसा परमो धर्म’। इस अहिंसा में समस्त जीवन का सार समाया है ; इसे हम अपनी सामान्य दिनचर्या में ३ आवश्यक नीतियों का पालन कर समन्वित कर सकते हैं। क ] कायिक अहिंसा (कष्ट न देना): यह अहिंसा का सबसे …
भगवान महावीर का जन्म तकरीबन ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। महावीर को ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है। तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। उन्होंने एक लँगोटी तक का परिग्रह …
जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए भगवान महावीर ने Read More »
जैन धर्म में सात तत्त्व माने गए हैं। जीव तत्व- वे, जिनमें चेतना हो। जानने-देखने की शक्ति हो। जैसे- वनस्पति, वायु, जल, अग्नि, पशु, पक्षी, मनुष्य। अजीव तत्व- जिनमें चेतना न हो, जैसे- लकड़ी, पत्थर। आस्रव तत्व- बंधन का जो कारण हो। आ+स्रव द आस्रव। आत्मा की ओर कर्मों का बहना। इंद्रिय रूपी द्वार से …
जैन दर्शन का मुख्य आधार है- ‘अनेकांत’। ‘अनेकांत’ यानी एक चीज का अनेक धर्मात्मक होना। भिन्न-भिन्न दृष्टि से जब हम देखते हैं, तो एक ही चीज एक ही नहीं, अनेक धर्मात्मक दिखाई पड़ती है। हर चीज का वर्णन किसी न किसी अपेक्षा से किया जाता है। हर वस्तु को मुख्य और गौण, दो अपेक्षाओं से …
भगवान महावीर ने सिर्फ उपदेश ही दिए। उन्होंने कोई ग्रंथ नहीं रचा। बाद में उनके गणधरों ने, प्रमुख शिष्यों ने उनके उपदेशों और वचनों का संग्रह कर लिया। इनका मूल साहित्य प्राकृत में है, विशेष रूप से मागधी में।जैन शासन के सबसे पुराने आगम ग्रंथ 46 माने जाते हैं। इनका वर्गीकरण इस प्रकार किया गया …
कर्म वह है, जो आत्मा का असली स्वभाव प्रकट न होने दे। उसे ढँक दे। जैन धर्म में कर्म सिद्धांत पर बहुत जोर दिया गया है। मूल कर्म आठ हैं- ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय। उत्तर प्रकृतियाँ अनेक हैं। जैन धर्म में ऐसा माना जाता है कि संसार के प्राणी जो …
भगवान महावीर ने जैन धर्म की धारा को व्यवस्थित करने का कार्य किया, लेकिन उनके बाद जैन धर्म मूलत: दो संप्रदायों में विभक्त हो गया: श्वेतांबर और दिगंबर। दोनों संप्रदायों में मतभेद दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर है। दिगंबर आचरण पालन में अधिक कठोर हैं जबकि श्वेतांबर कुछ उदार हैं। श्वेतांबर संप्रदाय के …
उविच्च भोगा पुरिसं चयन्ति,दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ।। – उत्तराध्ययन सूत्र 13/63 जैसे क्षीणफल वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, वैसे भोग क्षीणपुण्य पुरुष को छोड देते हैं जब तक वृक्ष पर मधुर पके हुए फल होते हैं, तब तक दूर-दूर से पक्षी उसकी शाखाओं पर आ कर बैठते हैं और फलों का मन-चाहा …