कर्म के बीज बोएंगे तो आदत, चरित्र, भाग्य और सेवा के फल मिलते हैं

महात्मा गांधी अपने अभियान में गांव-गांव का दौरा करते थे। उनका मानना था कि अगर ग्रामीण क्षेत्र में रह रहे लोगों की मानसिकता बदल गई तो भारत की स्वतंत्रता का अर्थ अलग ही होगा, क्योंकि ग्रामीण लोगों के सोचने का ढंग दो कारणों से अलग होता है। एक तो वे निरक्षर होते हैं और दूसरा, उन्होंने शहरी क्षेत्र के दोष नहीं देखे होते हैं। ये बात गांधीजी बहुत अच्छे से जानते थे।

जब वे एक गांव में पहुंचे, उस समय वहां खेती-बाड़ी से फुर्सत का समय था। फसलें कट चुकी थीं और गोदाम में पहुंच चुकी थीं। किसान आराम की स्थिति में थे। उस समय गांधीजी ने गांव वालों से बातचीत की तो उन्होंने कहा, ‘अभी हमारे पास बहुत समय है।’

गांधीजी बोले, ‘अगर समय खाली है, फसल कुछ बोना नहीं है तो मैं कहता हूं, इस समय कुछ ऐसे बीज बोएं, जिसकी फसल अलग ढंग से उगे।’

गांव वालों ने कहा, ‘ऐसे कौन से बीज होते हैं?’

गांधीजी ने कहा, ‘इस समय कर्म के बीज बोएं।’

गांव वालों ने कहा, ‘हम जो बीज बोते हैं उससे अन्न की फसल उगती है। कर्म के बीज कैसे होते हैं?’

गांधीजी ने कहा, ‘कर्म के बीज बोएंगे तो जो फल उगेंगे, उन फलों के नाम हैं आदत, चरित्र, भाग्य और सेवा। इनकी फसल भी उगाकर देखिए। वो बीज जिस फसल को उगाएंगे, उससे पेट भरता है। कर्म के बीज बोएंगे तो आत्मा को तृप्ति मिलेगी।’ गांव वालों को ये बात समझ आ गई।

सीख – जब भी हमारे पास खाली समय हो तो हमें कुछ ऐसे काम करना चाहिए जो उस समय हमारे काम आएं, जब हम व्यस्त हों। इसे रचनात्मकता कहते हैं।

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