एक स्कूल था। वहां एक दिन अचानक एक फैसला सुनाया गया कि जो भी छात्र वहां पढ़ रहे हैं, वे किताबें भी उसी स्कूल से खरीदेंगे। बाहरी दुकानों से कोई भी किताब नहीं खरीदेगा। इसके पीछे कारण था, ऐसा करने से स्कूल और टीचर्स को आर्थिक लाभ हो रहा था।
सारे विद्यार्थियों ने इस निर्णय को सिर झुकाकर मान लिया। सभी स्कूल से ही किताबें लेने के लिए तैयार हो गए लेकिन एक छात्र ऐसा भी था, जिसने स्कूल के इस फैसले का खुलकर विरोध किया। किताबें खरीदने से इनकार कर दिया। कई तरह की बातें हुईं। समझाया गया। धमकाया भी गया लेकिन वो विद्यार्थी टस से मस ना हुआ।
स्कूल प्रबंधन अपने फैसले पर अडिग था और विद्यार्थी अपने विरोध पर। बात और आगे बढ़ी। विद्यार्थी ने स्कूल में आंदोलन शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उससे और विद्यार्थी और उनके पैरेंट्स भी जुड़ते गए। आंदोलन इस स्तर पर पहुंच गया कि स्कूल मैनेजमेंट को अपना फैसला वापस लेना पड़ा।
स्कूल मैनेजमेंट और टीचर्स के खिलाफ आंदोलन करने की हिम्मत से उस छात्र की खूब सराहना की गई। सबने उसे शाबासी दी। उस छात्र का नाम था वल्लभ भाई पटेल। जो आगे चल कर सरदार पटेल बना। सरदार के स्वभाव में ये बात बचपन से थी कि जहां भी कुछ गलत देखते, उसके विरोध में खड़े हो जाते।
उन्होंने कहा कि शिक्षक हमारे गुरु हैं, सम्मानीय हैं लेकिन किताबें स्कूल से बेचने का जो फैसला था, उसके पीछे लालच था। अगर हमारे सम्मानीय और गुरुजन भी कुछ गलत करते हैं तो उनका विरोध करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। अगर किताबें इस तरह से स्कूल में ही बेची जाएंगी तो जो शिक्षा छात्रों तक पहुंचनी चाहिए, वो पहुंचेगी ही नहीं।
सीखः बच्चों में शुरू से ही ये संस्कार होना चाहिए कि वे गलत बातों का विरोध कर सकें। शिक्षा का महत्व तभी है। अगर हमारे बड़े भी कुछ गलत करते हैं तो उनका भी विरोध होना चाहिए।