किसी को दान देने से पहले यह जरूर देखें कि वह हमारे दान के लिए योग्य व्यक्ति है या नहीं

श्रीराम बहुत दयालु थे। दूसरों की मदद करना उनका स्वभाव था, लेकिन वे जानते थे कि किसी की मदद कर दी जाए तो हो सकता है कि सामने वाला आलसी हो जाए। कई बार लोग दान को अधिकार मानने लगते हैं।

श्रीराम दान करते थे तो कभी-कभी दान लेने वालों की परीक्षा भी लिया करते थे। एक बार उनके पास एक ब्राह्मण आया, वह बहुत गरीब था। ब्राह्मण की पत्नी ने उसे दबाव बनाकर श्रीराम के पास भेजा था।

ब्राह्मण ने श्रीराम से कहा, ‘मैं बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी कमा पाता हूं।’ श्रीराम उस समय कुछ काम कर रहे थे, उन्होंने ब्राह्मण की बात सुनी और उसके साथ थोड़ा मजाक किया।

श्रीराम ने उस ब्राह्मण से कहा, ‘यह छड़ी लो और इस छड़ी को जहां तक फेंक सकते हो, फेंको। जितनी गायों के ऊपर से छड़ी जाएगी और जितनी गायों को ये पार कर लेगी, वह सब गायें तुम्हारी हो जाएंगी।’

ब्राह्मण ने कमर कस ली। उसने सोचा कि अगर छड़ी फेंक कर ही दान प्राप्त करना है तो मैं बहुत दूर तक छड़ी फेंकूंगा। ब्राह्मण ने ऐसी छड़ी उड़ाई कि छड़ी आश्चर्यजनक रूप से हवा में दौड़ती हुई सरयू नदी के पार बहुत सारी गायें घास चर रही थीं, उनके पास जाकर गिर गई।

ब्राह्मण ने कहा, ‘अब ये सब गायें मेरी हुईं।’ श्रीराम ने मुस्कान के साथ कहा, ‘मैंने तुम्हारा मजाक उड़ाया, मैंने तुम्हारी परीक्षा ली। इसके पीछे मेरा उद्देश्य यह था कि एक ब्राह्मण का पराक्रम जाग जाए। तुम्हें भी ये बोध हो जाए कि अपने ही परिश्रम से दान प्राप्त करना चाहिए। दान कोई भीख नहीं है।’

सीख- दान देते समय हमें ये देखना चाहिए कि दान लेने वाला व्यक्ति योग्य है या नहीं। दान लेने वाले व्यक्ति को भी अपना व्यक्तित्व बहुत ऊंचा रखना चाहिए, ताकि दान देने वाले को गर्व हो कि उसने सही व्यक्ति को दान दिया है।

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