विवेकानंद कलकत्ता (कोलकाता) की गलियों में भूखे पेट घूम रहे थे। ऐसा उनके जीवन में कई बार हुआ। इसकी वजह यह थी कि उनके पिता का निधन हो गया था तो उनके घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी। जैसे-तैसे उनकी मां बच्चों का लालन-पालन कर रही थीं।
कभी-कभी ऐसा होता था कि विवेकानंद जब रात में घर आते तो खाने के लिए कुछ होता नहीं था। वे अपनी मां से झूठ बोल देते कि मुझे आज कहीं बाहर भोजन करने जाना है और बाहर गलियों में घूमकर लौट आते थे।
उन दिनों विवेकानंद परमहंसजी से जुड़ चुके थे। किसी ने परमहंसजी से कहा, ‘विवेकानंद इन दिनों भूखा रहता है।’ इसके बाद एक दिन परमहंस ने कहा, ‘नरेंद्र तुम्हारे ऊपर काली माई की कृपा है। माई की मूर्ति के सामने जाओ और भोजन मांग लो, भूखे मत रहो। वो मां है, तुम्हारे भोजन की व्यवस्था करेंगी।’
विवेकानंद बोले, ‘मैं जब माई की मूर्ति के सामने जाता हूं और भूखा होने के कारण एक बार मेरे मन में आया भी कि मैं इनसे भोजन मांग लूं, लेकिन पता नहीं क्यों मेरे मन से आवाज आई कि माई सामने हैं, कृपा कर रही हैं तो भोजन क्या मांगना? मांगना ही है तो आनंद मांगना चाहिए। बिना कुछ मांगे ही उस मूर्ति के सामने मैं इतना आनंदित हो जाता हूं कि अपनी भूख भूल जाता हूं।’
ये सुनकर परमहंसजी की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा, ‘नरेंद्र तुम समझ गए कि जीवन में किससे क्या मांगा जाता है।’
सीख – अगर भगवान से कुछ मांगना है तो भौतिक सुख-सुविधा की चीजें नहीं मांगनी चाहिए। ये चीजें तो हम अपनी मेहनत से हासिल कर सकते हैं, लेकिन जो अनूठा है, वह देव कृपा से मिलता है। भगवान से प्रसन्नता और आत्मविश्वास मांगना चाहिए। इसलिए किससे कब क्या मांगा जाए, इस बात की समझ होनी चाहिए।