एक दिन स्वामी विवेकानंद किसी गांव में प्रवचन देने जा रहे थे। उनके साथ कई शिष्य भी थे। रास्ते में उनके एक विरोधी का घर भी था। स्वामीजी के विरोधी ने जब उन्हें देखा तो वह गुस्सा हो गया।
वह व्यक्ति विवेकानंद से नफरत करता था। जैसे ही उसने स्वामीजी को देखा वह दौड़कर उनके पास पहुंचा और जोर-जोर से गालियां देने लगा। स्वामीजी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और वे आगे बढ़ते रहे। विरोधी व्यक्ति भी उनके पीछे-पीछे चलते हुए चिल्ला-चिल्लाकर गालियां दे रहा था।
स्वामीजी के साथ चल रहे सभी शिष्य उस व्यक्ति के गलत व्यवहार से परेशान हो रहे थे, उन्होंने देखा कि स्वामीजी सभी से बात करते हुए शांति से आगे बढ़ रहे हैं। विरोधी व्यक्ति को किसी ने रोका-टोका नहीं तो वह आजाद हो गया, और ज्यादा गंदे शब्दों का उपयोग करने लगा। वह गालियां देते-देते हद पार कर रहा था।
कुछ ही देर बाद वे लोग उस गांव की सीमा तक पहुंच गए, जहां स्वामीजी को प्रवचन देना था। वहीं गांव की सीमा पर स्वामीजी रुके और उस विरोधी व्यक्ति से कहा, ‘देखो भइया, तुम बहुत विद्वान हो। शब्दों का भंडार तुम्हारे पास है। उन शब्दों को गालियां बनाकर जितना तुम मुझे दे सकते थे, तुमने दे दिया है। मुझे इसी गांव में जाना है। अब तुम यहीं रुक जाओ, क्योंकि मेरे पीछे-पीछे तुम इस गांव में आओगे और इसी तरह मुझे गालियां देते रहोगे तो सभा स्थल पर मेरे जो भक्त हैं, वे तुम्हें दंड देंगे और मैं तुम्हें उन लोगों से बचा नहीं पाऊंगा। मुझे तकलीफ होगी कि मेरी वजह से तुम्हारे जैसे विद्वान व्यक्ति की पिटाई हो गई। पिटोगे तुम और पाप मुझे लगेगा। अच्छा तो ये है कि तुम यहीं रुक जाओ और वापस लौट जाओ। जो भेंट तुमने मुझे दी है, वह भी अपने साथ वापस ले जाओ।’
विवेकानंदजी का व्यवहार देखकर वह व्यक्ति चौंक गया। उसे ऐसे व्यवहार की उम्मीद ही नहीं थी। वह स्वामीजी के पैरों में गिर पड़ा और उनसे क्षमा मांगने लगा।
सीख – स्वामीजी ने उस व्यक्ति को समझाया कि किसी के भी साथ गलत काम करोगे तो दंड पता नहीं किस तरीके से मिलेगा, क्योंकि कर्मों का फल तो मिलता ही है। इसीलिए सभी के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करें। अच्छे शब्दों का उपयोग करें। किसी के लिए भी गलत बात न करें।