भले ही माता कम पढ़ी-लिखी हो, लेकिन उनकी छोटी-छोटी बातों को भी शिक्षा के रूप में समझना चाहिए

द्वापर युग में कंस को आकाशवाणी ने बताया कि देवकी और वसुदेव की आठवीं संतान तुम्हारा वध करेगी। ये आकाशवाणी सुनकर कंस ने अपनी बहन और बहनोई को कारागार में बंद कर दिया। देवकी-वसुदेव की छह संतानों को कंस ने पैदा होते ही मार दिया था।

सातवीं संतान के रूप में बलराम का जन्म हुआ, जिन्हें भगवान की लीला से गोकुल भेज दिया गया। इसके बाद आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण पैदा हुए। जन्म के बाद भगवान अपने चतुर्भुज स्वरूप में मां देवकी के सामने प्रकट हुए। देवकी ने जब अपनी संतान को परमात्मा के स्वरूप में देखा तो मुंह फेर लिया।

भगवान बोले, ‘देवकीजी आपने तपस्या करके वरदान लिया था कि मैं आपके यहां पुत्र बनकर आऊं तो अब मैं आ गया हूं, लेकिन आप मुंह क्यों फेर रही हैं?’

देवकी बोलीं, ‘आपने कहा था कि आप पुत्र बनकर आएंगे, लेकिन आप तो परमात्मा बनकर आए हैं। मुझे पुत्र चाहिए। अगर आप मेरी तपस्या का फल देना चाहते हैं, अपना वचन निभाना चाहते हैं तो बालक बनकर मेरी गोद में आ जाइए।’

ये बात सुनते ही भगवान ने अपना चतुर्भुज स्वरूप छोड़ा और बालक बनकर मां देवकी की गोद में आ गए।

सीख – इस घटना से श्रीकृष्ण ने ये संदेश दिया है कि जब मैंने कृष्ण बनकर जन्म लिया तो सबसे पहले अपनी मां की आज्ञा मानी। हमारे जीवन में सबसे अधिक महत्व मां का है। इसीलिए मनुष्य को अपनी मां की छोटी-छोटी बातों को भी शिक्षा के रूप में लेना चाहिए, भले ही मां कम पढ़ी-लिखी हो। मां संतान के सुखी जीवन को ध्यान में रखकर ही बोलती हैं। माता का अनादर न करें और उनकी हर एक आज्ञा का पालन करें।

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