महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी…..भाग ८

कुछ रिश्ते ऊपरवाला बनाता है,
कुछ रिश्ते लोग बनाते हैं,
पर कुछ लोग बिना किसी रिश्ते के ही रिश्ता निभाते हैं,
शायद वही लोग दोस्त कहलाते हैं…

सामने हो मंजिल तो कदम ना मोड़ना,
जो मन में हो वो ख्वाब ना छोड़ना,
हर कदम पर मिलेगी कामयाबी तुम्हे,
बस सितारे छूने के लिए कभी ज़मीन ना छोड़ना..

ज़िन्दगी कि कश्ती कब लगेगी किनारे,
कब इसे मिलेंगी मनचाही बहारें,
जीना तो पड़ेगा ही, कैसे भी यारे,
कभी दोस्तों कि भीड़ में,तो कभी तन्हाई के सहारे..

जाने क्यूँ इस जहां में ऐसा होता है,
ख़ुशी मिले जिसे वो ही रोता है,
उम्र भर साथ निभा ना सके जो,
जाने क्यूँ प्यार उसी से होता है..

वो मुलाक़ात कुछ अधूरी सी लगी,
पास होकर भी एक दूरी सी लगी,
होठों पे हँसी,आँखों में नमी,
पहली बार किसी कि दोस्ती इतनी ज़रूरी सी लगी..

तुमने तुम्हारी जुल्फों को कुछ इस तरह बिखेरा है,
कि इक तरफ उजाला है,और इक तरफ अँधेरा है…

उनको हमे मोहब्बत नहीं ये हमने तब जाना,
जब उनकी मोहब्बत ने कर दिया हमको दीवाना….

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