पहली मुलाकात

उन चंचल चितवन नयनों से तुम्हारा,
मुझे यूँ पहली बार देखना,
उन कोमल सी उँगलियों से तुम्हारा,
मेरी हथेलियों को स्पर्श करना,
शायद ये पहली मुलाकात का वो,
प्यारा सा एहसास ही था,
जिसकी चाहत में न जाने कितने सावन मैंने बिता दिए॥
और जिस मुलाकात की कल्पना में ही,
न जाने कितने रैना नयनों में ही बिता दिए॥
उस पल,उस लम्हे की मौजूदगी,
को बयाँ करने के लिए शायद,
मेरे तरकश में शब्द ही नहीं हैं,
मगर फिर भी लिख रहा हूँ चन्द पँक्तियाँ,
ये सोचकर की किसी की मौजूदगी के जादू,
को बयाँ करने के लिए कविता ही ज़रूरी है,
और हो सकता है की कभी इस कविता को,
पढ़ कर तेरे सामने मैं कह सकूँ सबसे,
की मैं तेरा और तू सिर्फ मेरी है॥

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