एक ग़ज़ल…

लफ्ज़-दर-लफ्ज़ यह किताब पढना चाहता हूँ,
मैं तुम्हारी नज़र का हर ख्वाब पढना चाहता हूँ,

जिनके माथे पे अंधेरों ने लिखी है तहरीर,
उनके चेहरों पे अफताब पढना चाहता हूँ,

महल के पाँव ने कुचला जिनको सदियों से,
उनकी आँखों में इंक़लाब पढना चाहता हूँ,

जिसको लिखा है गरीबों के खून से बनिये ने,
सूद दर सूद वो हिसाब पढना चाहता हूँ,

जिसमे हों जज़्ब समंदर की कोई गहराई,
बूँद की आँख का सैलाब पढना चाहता हूँ…..

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