कुछ अनकही शायरियाँ………भाग 6

कुछ रिश्ते अनजाने में बन जाते हैं,
पहले ज़िन्दगी फिर दिल से जुड़ जाते हैं,
कहते हैं उस दौर को “दोस्ती”,
जिसमे अनजाने ना जाने कब अपने बन जाते हैं…

कुछ करके दिखाएं कि काम बहुत हैं,
इस जहां में जीतना वाले मुक़ाम बहुत हैं,
मुकम्मल शख्स वो ही है जो दुनिया को बदल डाले,
मर मिटने वाले यहाँ नाम बहुत हैं…

हर काली तुझसे खुश्बू उधार मांगे,
आफताब तुझसे नूर उधार मांगे,
रब करे कि तू दोस्ती ऐसी निभाये,
कि लोग तुझसे तेरी दोस्ती उधार मांगे,

तेरे जाने के बाद कुछ अजीब सी कहानी मेरी,
ना कोई ज़ख्म ना कोई निशानी तेरी,
हर कोई पूछता है मुझसे,
कहाँ गई वो दीवानी तेरी,
बस हँस कर ये जवाब देता हूँ,
वो थी एक अनसुनी कहानी मेरी,
हर रात में तन्हाई पूछा करती है,
कहाँ गई वो पगली सी दीवानी तेरी,
और मैं बस यही केह पाटा हूँ,
वो है एक अधूरी कहानी मेरी…

महफ़िल में कुछ तो सुनाना पड़ता है,
ग़म को छुपाकर मुस्कुराना पड़ता है,
कभी उनके हम भी थे दोस्त,
आजकल उन्हें याद दिलाना पड़ता है…

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