नूतन वर्ष पर एक कविता

जो पीछे मुड़ कर के देखा तो
कुछ यादें बुला रही थी,
अब तक के सफर की
सारी बातें बता रही थी।

कितनी मुश्किल राहें थीं
हम क्या क्या कर गए,
एक सुकून की तलाश में
कहां कहां से गुजर गए।

कितने ही लोग मिले जीवन में
कितने बिछुड़ गए,इस सफर में
हर मुश्किल में साथ निभाने वाले
जाने किधर खो गए इस सूनेपन में

वो अलग ही जमाना था
वो दौर ही कुछ और था,
जब जिंदगी जीने का
मक़सद ही कुछ और था।

बचपन की नादानियां थीं
ख्वाबों भरी जवानियां थीं,
घर की जिम्मेदारियां थीं
काम धंधे की परेशानियां थीं।

उम्र के हर दौर के सपने अलग थे
खुशियों के दृष्टिकोण अलग थे,
मकसद अलग था
नज़रिया अलग था।

वक्त के आईने में खुद को
देखकरसोचता रहता हूँ,
क्या खोया क्या पाया मैंने
अक्सर खुद को तौलता रहता हूँ।

कुछ परिचित चेहरे, कुछ बातें
कुछ भूली बिसरी खट्टी मीठी यादें,
ढूंढ रही हैं मुझे उम्र के इस मोड़ पर
क्या सही था क्या गलत था
आज पूछ रही हैं मुझसे।

उम्र के साथ साथ
सोच बदलती रहती है,
चाहत बदलती रहती है
खोज बदलती रहती है।

अब इस मुकाम पर
एक ठहराव आ गया है,
मंज़िल का तो पता नहीं
पर पड़ाव आ गया है।

बेचैन मन को राहत मिलने लगी है
समझौता कर लिया तो,
ज़िन्दगी मुकम्मल लगने लगी है।

हे प्रभु तेरा शुक्रिया
तुझसे कोई शिकवा गिला नहीं है,
यहां सब थोड़े अधूरे से हैं
किसी को पूरा मिला नहीं है।

बहुत सारी कट गई
अब जो थोड़ी सी बची है,
उसमें बस अब चाहत यही है
किसी के होठों पे मुस्कान ला पाउं
जाने के बाद भी किसी को याद आउं
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
ना जाने कैसे गुजर गई जिंदगी
ना जाने कितनी बची है जिंदगी ?
बस यही है जिंदगी
बस यही है जिंदगी
क्या इसी का नाम है जिंदगी

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