अपने कार्यों का बहुत अधिक प्रचार-प्रसार नहीं करना चाहिए, वर्ना अच्छा काम भी पाखंड हो जाता है

सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी नाम की एक संस्था थी। इस संस्था में देश के बड़े प्रतिष्ठित लोग सदस्य हुआ करते थे। इस संस्था का काम था देश हित में विचार करना, देश हित में काम करना। लाल बहादुर शास्त्री भी इस सोसयटी के सदस्य थे।

एक दिन संस्था के एक स्वयं सेवक ने शास्त्री जी से कहा, ‘हमारी संस्था के कार्यक्रम की सूची अखबार में छपी है। संस्था का परिचय भी छपा है, लेकिन इसमें आपका नाम नहीं है। मैं हर बार देखता हूं कि जब भी अखबार में कोई खबर छपती है, कोई प्रचार-प्रसार का मामला होता है तो आप अपना नाम खुद काट देते हैं। आप ऐसा क्यों करते हैं? क्या आपको छपना अच्छा नहीं लगता है?’

शास्त्री जी ने कहा, ‘मित्र मैं तुम्हें समझाऊ कि प्रचार-प्रसार में मुझे क्यों रुचि नहीं है, क्यों मैं ऐसा करता हूं। इसमें बहुत समय लग जाएगा। मैं तुम्हें लाला लाजपत राय की एक बात बताता हूं, वे कहते थे कि सोसायटी के लोगों को ये बात ध्यान रखनी चाहिए कि किसी भी खूबसूरत इमारत में दो तरह के पत्थर लगे होते हैं। एक बाहर दिखता है, चाहे वह संगमरमर का हो, जिस पर नक्काशी की जाती है, दुनिया तारीफ भी उसी पत्थर की करती है, लेकिन खूबसूरत इमारत और उसके जो पत्थर दिख रहे हैं, जिनकी प्रशंसा हो रही है, वे जिस पर खड़े हैं, वे नींव के पत्थर किसी को दिखाई नहीं देते हैं। इन पत्थरों की कोई तारीफ भी नहीं करता है। मुझे लाला जी की ये बात अच्छी लगती है कि नींव के पत्थर रहने में सुख है, आनंद है, संतोष है। बहुत अधिक प्रदर्शन से स्वभाव में अहंकार आ जाता है और हम लक्ष्य से भटक जाते हैं।’

सीख – ये कहानी में हमें संदेश दे रही है कि हमें अपने कामों का बहुत अधिक प्रचार-प्रसार नहीं करना चाहिए, वर्ना अच्छा काम भी पाखंड बन जाता है।

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