विश्रवा मुनि का बड़ा बेटा था वैश्रवण। ये वही वैश्रवण है जो रावण का बड़ा भाई था। लंका वैश्रवण के पास ही थी। वैश्रवण ने खूब तपस्या की तो शिव जी और देवी पार्वती प्रकट हुए।
शिव जी ने कहा, ‘वैश्रवण मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। तुम कोई वरदान मांग लो।’
वैश्रवण ने जब आंखें खोलीं तो सामने शिव-पार्वती थे। वह शिव जी की बात सुन रहा था, लेकिन उसकी दृष्टि माता पार्वती की ओर थी। शिव जी उसे वर दे चुके थे कि तुम्हारे पास खूब धन-संपत्ति होगी। तुम देवताओं के कोषाध्यक्ष बनोगे। इस संसार में लोग संपत्ति तुमसे ही मागेंगे।
वैश्रवण ने उस समय माता पार्वती पर कुदृष्टि डाली तो देवी असहज हो गईं और कहती हैं, ‘तेरी बाईं आंख फूट जाए, तूने मुझे अच्छी दृष्टि से नहीं देखा।’
शिव जी बोले, ‘इतना गुस्सा क्यों करती हो, ये हमारे बेटे जैसा है।’ तब पार्वती जी को उस पर दया आई और बोलीं, ‘श्राप तो मैं दे चुकी हूं। अब आशीर्वाद देती हूं कि तुम सबके लिए धन के दाता बनो।’
शिव जी बोले, ‘तुम्हारी मुझसे मित्रता होगी। मैं हमेशा तुम्हारे निकट रहूंगा।’
पार्वती जी बोलीं, ‘तुमने मेरे रूप के प्रति ईर्ष्या की है, कुदृष्टि डाली है, इसलिए तुम्हारा नाम कुबेर होगा।’
सीख – अगर हम दूसरों से ईर्ष्या करते हैं तो हमारा ही नुकसान होता है। आप अपने परिश्रम से धन कमाइए, दूसरा उसके ढंग से धन कमाएगा। वैश्रवण ने पार्वती जी पर कुदृष्टि डालकर ईर्ष्या की थी कि मेरे पास भी ऐसी सुंदर स्त्री हो, ऐसा वैभवशाली वैवाहिक जीवन हो, तब देवी ने वैश्रवण को श्राप दिया था। हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारे पास जो भी धन-संपत्ति हो, वह हमारी मेहनत से कमाई हुई ही होनी चाहिए। दूसरों की संपत्ति पर हम बुरी नजर न डालें।