जब दो बुरी चीजों में से किसी एक को चुनना हो तो उस बुराई को चुनिए, जिसके भीतर भी कोई अच्छाई हो, कोई सकारात्मकता हो

रावण का एक सेनापति था मारीच। रिश्ते में वो रावण का मामा भी था। मारीच की मां का नाम ताड़का और पिता का नाम सुंद था। जब सूर्पनखा ने रावण को सीता के बारे में बताया और रावण ने सीता का हरण करने का विचार किया। तब वो मारीच के पास पहुंचा।

मारीच मायावी था, वो कई तरह के रूप धरकर छल करने में माहिर था। रावण ने पहुंचते ही मारीच को प्रणाम किया। मारीच समझ गया कि आज कुछ बड़ा ही विकट संकट आने वाला है, क्योंकि नीच लोग बिना किसी स्वार्थ के इतना नहीं झुकते। फिर, मारीच ने रावण के आने का कारण पूछा।

रावण ने बताया कि वो दंडकारण्य की पंचवटी से सीता का हरण करना चाहता है। इसके लिए राम को वहां से कुछ समय के लिए हटाना जरूरी है। रावण ने मारीच से कहा कि आप स्वर्ण मृग बनकर पंचवटी चलिए। सीता आपको देखकर पकड़ने के लिए ललचाएगी। वो राम को आपके पीछे भेजेगी। राम को आप उनकी कुटिया से दूर ले जाइए। तभी मैं सीता का हरण कर लूंगा।

मारीच ने रावण को समझाया कि राम से दुश्मनी करना ठीक नहीं है। विश्वामित्र के यज्ञ को भंग करते समय मुझे राम ने सिर्फ एक तिनके का बाण मारा था और मैं समुद्र के इस पार आकर गिरा था। राम दैवीय पुरुष है। भगवान विष्णु के अवतार हैं।

रावण नहीं माना। उसने मारीच से कहा कि अगर तुम मेरा कहना नहीं मानोगे तो मैं इसी क्षण तुम्हारा वध कर दूंगा। मारीच ने सोचा कि अगर मैं स्वर्ण मृग बनकर रावण का साथ नहीं दूंगा तो ये मुझे इसी समय मार देगा। अगर साथ देता हूं तो दंडकारण्य में राम के हाथों मारा जाऊंगा। रावण के हाथ से मरने में कोई लाभ नहीं है, लेकिन राम के हाथों से मरने में मोक्ष का मार्ग खुलेगा।

ये सोचकर मारीच स्वर्ण मृग बनकर पंचवटी में जाने के लिए तैयार हो गया और बाद में राम के हाथों मारा गया।

सीखः कभी-कभी हमारे सामने ऐसी स्थिति बन जाती है कि दो बुराइयों में से किसी एक को चुनना होता है। ऐसे हमें दोनों बुराइयों के बारे में गंभीरता से विचार कर उसको चुनना चाहिए, जिसके अंत में या तह में कोई अच्छाई छिपी हो।

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