अपने आसपास के जरूरतमंद लोगों की तन, मन और धन से सेवा करने वालों की तो भगवान भी मदद करते हैं

संत ज्ञानेश्वर से जुड़ा एक किस्सा है। एक नदी किनारे कोई महात्मा ध्यान में बैठे हुए थे। उस समय संत ज्ञानेश्वर वहां से गुजर रहे थे। ज्ञानेश्वरजी ने देखा कि पैर फिसलने की वजह से एक छोटा बच्चा नदी में गिर गया है और वह डूब रहा है। उसे तैरना नहीं आता था।

संत ज्ञानेश्वर तुरंत नदी में कूद गए और उस बच्चे को बचा लिया। किनारे पर महात्मा अभी भी ध्यान में ही बैठे हुए थे। बीच-बीच में वे आंखें खोलते और फिर बंद कर लेते।

ज्ञानेश्वरजी उस महात्मा के पास पहुंचे और बोले, ‘आप क्या कर रहे हैं?’

महात्मा बोले, ‘मैं ईश्वर का ध्यान कर रहा हूं।’

ज्ञानेश्वर बोले, ‘क्या आपको मालूम नहीं था कि ये बच्चा नदी में डूब रहा है?’

महात्मा ने कहा, ‘मैंने देख तो लिया था, लेकिन मैं ईश्वर के ध्यान में खोया था।’

ज्ञानेश्वर बोले, ‘ईश्वर आपके ध्यान में कभी नहीं आएगा। किसी के प्राण जा रहे थे, वह भगवान की बगिया का ही एक फूल है। आप चाहते तो इस बच्चे को बचा सकते थे। आपके लिए प्राथमिकता क्या है? परमात्मा या परमात्मा के बनाए हुए इस संसार के विधान। दूसरों की सेवा करना, किसी के प्राण बचाना, मदद करना, ये सभी भगवान के बनाए हुए विधान हैं। इसे सेवा और कर्तव्य कहते हैं। यही भक्ति है। मेरी तो आपको यही सलाह है कि रोज रात में सोने से पहले, ध्यान में जाने से पूर्व एक बार भगवान से जरूर कहना कि आपने मुझे मनुष्य का शरीर दिया है तो आज दिनभर मुझसे जो बना मैंने दूसरों की सेवा की। अब आप इस शरीर को विश्राम करने की अनुमति दीजिए। जब इस बात का ध्यान रखेंगे, तब परमात्मा जीवन में आएंगे।’

सीख – संत ज्ञानेश्वर ने हमें समझाया है कि अपने आसपास लगातार इस बात का ध्यान रखना कि कोई भूखा न सो जाए या कोई दवाओं के अभाव में बीमारी से मर न जाए। हमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। किसी की जरूरतों को पूरा करने के बाद जब आप परमात्मा को याद करते हैं तो उससे पहले ही परमात्मा खुद आपकी ओर चल पड़ते हैं।

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