गुरु को अपनी समस्याएं जरूर बताएं, गुरु आपकी बात सुनेंगे और सही रास्ता भी दिखाएंगे

रामायण में राजा दशरथ बूढ़े हो चुके थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे चिंतित रहते थे। एक दिन राजा अपने गुरु वशिष्ठजी के पास पहुंचे।

दशरथजी ने गुरु से कहा, ‘एक तो मैं राजा हूं और दूसरा वृद्ध। मैं मेरा दुख किसी से कह भी नहीं सकता हूं, लेकिन आप मेरे गुरु हैं। इसलिए मैं मेरा दुख आपके साथ बांटने आया हूं। कुछ ऐसा उपाय बताइए कि मेरे घर संतान हो जाए।’

वशिष्ठजी ने कहा, ‘राजा ये आपने बहुत अच्छा किया जो आप मेरे पास आए हैं। दुख किसी से तो बांटना ही चाहिए। आप पुत्रकामेष्टी यज्ञ करें। इस यज्ञ से आपके यहां चार पुत्र होंगे। चारों पुत्र एक से बढ़कर एक होंगे।’

राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ये चारों इसी यज्ञ के प्रभाव से पैदा हुए थे। दशरथजी दुख की अवस्था में अपने गुरु के पास गए और उन्हें अपनी समस्या का समाधान भी मिल गया।

सीख – इस कहानी की सीख यही है कि दुख सभी के जीवन में आते हैं। बड़े-बड़े लोगों को भी दुखों का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में समझ नहीं आता है कि दुख किसके साथ बांटे? क्योंकि समाज में अधिकतर लोग ऐसे हैं, जो हमारे दुख सुनकर मजाक उड़ाते हैं, लेकिन गुरु ऐसा नहीं करते हैं। हमें अपना दुख गुरु के साथ जरूर बांटना चाहिए। गुरु हमारी बात को गंभीरता से सुनते हैं, समझते हैं और समस्या को हल करने का उपाय भी बताते हैं। उपाय तो हमें ही करना है। यज्ञ दशरथजी ने ही करवाया, वशिष्ठजी ने सिर्फ रास्ता दिखाया। जीवन में जो सही उपाय बताए, वही गुरु होता है।

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