महात्मा गांधी यात्रा बहुत करते थे और इस दौरान वे अपने करीबियों के घर रुकना पसंद करते थे। उनका मानना था कि जब हम किसी के घर ठहरते हैं तो इससे अपनापन बढ़ता है। कुछ बातें हम उनसे सीखते हैं और कुछ वे लोग हम से सीखते हैं। एक बार गांधीजी जवाहरलाल नेहरू के साथ इलाहाबाद के आनंद भवन में रुके थे।
एक दिन सुबह के समय जब गांधीजी उठे तो वे लोटे में पानी लेकर हाथ-मुंह धो रहे थे। इस दौरान वे नेहरूजी से बात भी कर रहे थे, क्योंकि उनकी आदत थी कि वे काम करते-करते बातें भी किया करते थे। उनके लोटे का पानी खत्म हो गया, लेकिन वे अपना मुंह ठीक धो नहीं सके। इस बात से वे असहज हो गए और बात करना बंद कर दी।
जब गांधीजी चुप हुए तो नेहरूजी उन्हें देखकर समझ गए कि पानी खत्म हो गया है और इनका मुंह धोने का काम अधूरा रह गया है। नेहरूजी ने कहा, ‘क्या बात है बापू, आप एकदम असहज क्यों हो गए हैं?’ गांधीजी ने जवाब दिया, ‘तुमसे बात करते समय मैं इतना खो गया कि मुझे पता ही नहीं लगा कि पानी खत्म हो गया और मेरा ये काम अधूरा रह गया।’
नेहरूजी ने हंसते हुए कहा, ‘यहां तो गंगा बह रही है, यमुना नदी है। पानी की कोई कमी नहीं है। आप जितना चाहें, उतना लोटा पानी ले लीजिए।’
गांधीजी बोले, ‘ये दोनों नदियां सिर्फ मेरे लिए ही नहीं बह रही हैं, न सिर्फ ये नदियां, बल्कि देश का जितना पानी है, वह अनेक लोगों के काम आएगा। हमारा ऐसा इरादा होना चाहिए। मैं किसी भी काम के लिए एक लोटा भी ज्यादा लेता हूं तो मैं अपने देश के कई लोगों के हक का पानी ले रहा हूं।’
नेहरूजी को उस दिन लगा कि बापू कितना गहरा सोचते हैं।
सीख – जल और अन्य वस्तुओं का उपयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए। गांधीजी की ये बात आज भी लागू होती है। आज पानी बचाना एक पूजा की तरह है। अगर हमने अब भी जल नहीं बचाया तो अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा।