सफलता अपने संकेत जरूर देती है।

घटना श्रीराम-रावण युद्ध के चौथे दिन की है। उस समय रावण के कहने पर उसके भाई अहिरावण ने श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण कर लिया था। अहिरावण मायावी था। वह विभीषण के रूप में राम-लक्ष्मण के शिविर में पहुंचा था, इस वजह से हनुमानजी भी उसे पहचान नहीं सके और वह अपनी योजना में सफल हो गया।

हनुमानजी को समझ नहीं आ रहा था कि राम-लक्ष्मण कहां होंगे, किसने उनका हरण किया है? तब विभीषण ने उन्हें बताया कि मेरा रूप सिर्फ अहिरावण धारण कर सकता है। उसी ने राम-लक्ष्मण का हरण किया है।

अब हनुमानजी राम-लक्ष्मण की खोज में लग गए। लेकिन, उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी। तब वे एक पेड़ के नीचे बैठकर सोच रहे थे कि अहिरावण कहां होगा? उसने श्रीराम और लक्ष्मण को कहां रखा होगा? उस समय पेड़ पर दो पक्षी बैठे हुए थे। वे दोनों बातें कर रहे थे कि आज अहिरावण देवी को इंसानों की बलि देगा तो हमें इंसान का मांस खाने को मिलेगा।

हनुमानजी पक्षियों की भाषा समझते थे, ये बातें सुनते ही उन्हें समझ आ गया कि ये श्रीराम और लक्ष्मण के बारे में ही बातें कर रहे हैं और अहिरावण का ठिकाना आसपास ही होगा। हनुमानजी ने उस क्षेत्र में खोज शुरू कर दी।

पक्षियों के एक संकेत से हनुमानजी को एक दिशा मिल गई और उन्होंने श्रीराम-लक्ष्मण को खोजकर अहिरावण की कैद से आजाद करवा लिया। अहिरावण को उसकी सेना सहित मार दिया।

सीख- ये कहानी हमें बता रही है कि किसी भी काम को करते समय सावधानी रखेंगे और आसपास की छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान रखेंगे तो सफलता के संकेत जरूर मिलेंगे। सफलता अपने संकेत जरूर देती है।

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