एक बार गांधीजी साबरमती आश्रम का निर्माण कर रहे थे तो गुजरात के एक बड़े विद्वान उनके पास आए और कहने लगे, ’’महात्मन! मैं आपके पास रहकर गीता का गूढ़ रहस्य समझना चाहता हूँ ।” महात्मा जी ने उनकी बात सुन ली और उन्होंने रावजी भाई को बुलाया। वे आश्रम की जिम्मेदारी चला रहे थे। रावजी भाई आए तो महात्मा जी ने कहा “ये गुजरात के प्रख्यात व्यक्ति हैं और अपने पास कोई काम हो तो इन्हें उस पर लगा दें।”
रावजी भाई के पास आश्रम निर्माण का सारा काम था। उन्होंने उनसे कहा कि आप गांधीजी के पास रहना चाहते है तो ईंटें उठाकर रखते जाइये वे कुछ बोल नहीं सके। दो चार रोज तो उन्होंने ईंटें उठाई, फिर तंग आ गए और रावजी भाई से कहने लगे-मेरी तो आपने दुर्दषा कर दी, मजदूर का काम मेरे सुपुर्द कर दिया, मेरा काम यह नहीं है। यह तो मजदूरों का काम है।
वह बात जव गांधीजी के पास गई तो उन्होंने कहा कि यही तो गीता का गूढ़ रहस्य है। आप केवल गादी-तकिये के सहारे बैठकर गीता का गुढ़ रहस्य समझना चाहते हैं तो क्या वो समझ में आ सकता है। आप अपने कर्त्तव्य को समझें और जिस क्षेत्र में चल रहें हैं, उसकी जिम्मदारी लें तो वह गूढ़ रहस्य समझ में आ सकता है।