एकमत हो देश का जनमत

अक्सर मेरे मन में यह ख्याल आता है कि किसी वंचित या अल्पसंख्यक तबके का सदस्य होने पर कैसा लगता होगा। मैं न तो मुस्लिम हूं और न ही दलित। मैं महिला भी नहीं हूं। मैं पूर्वोत्तर राज्यों से भी नहीं हूं, जहां के लोग अक्सर भारत के अन्य क्षेत्रों में स्वयं को उपेक्षित अनुभव करते हैं।

मैं एक अल्पसंख्यक होने के अहसास के सबसे करीब तब पहुंचा था, जब मैं विदेश में एक बैंक में काम कर रहा था और वहां कभी-कभी मुझे लगता था कि भारतीयों के साथ तनिक उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है। लेकिन वास्तव में मैं कभी पूरी तरह नहीं समझ सकता कि अल्पसंख्यक वर्गो को किन स्थितियों का सामना करना पड़ता है। लिहाजा मेरे द्वारा देश के अल्पसंख्यकों को किसी तरह का सुझाव देने की कोशिश एक हिमाकत ही कही जाएगी।

बहरहाल, इस बात में कोई संदेह नहीं है कि एक बेहतर भारत के निर्माण के लिए हमें बेहतर नेताओं की जरूरत है और बेहतर नेताओं की खोज हम सभी को मिल-जुलकर ही करनी पड़ेगी। हम सभी को अपने मताधिकार का बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना सीखना होगा।

अभी तक हमने अपने मताधिकार का समुचित सम्मान नहीं किया है और यही कारण है कि कुछ अनैतिक लोग भी सत्ता में शीर्ष तक पहुंच जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? या तो हमारा सिस्टम ही खराब है या हमें अपने मताधिकार का इस्तेमाल करना नहीं आता। दूसरी बात ज्यादा सही है और इसी का फायदा उठाकर हमारे राजनेता हमें छलते हैं।

राजनेताओं ने हमें कई तरह से छला है और उन्हीं में से एक है वोट बैंक की राजनीति। वे समाज के कुछ तबकों की भावनाओं का शोषण करना जानते हैं। वे उनके शुभचिंतक होने का दावा करते हैं और बदले में उनसे वोट मांगते हैं। वंचित तबकों के लोग इन नेताओं को इस उम्मीद के साथ वोट देते हैं कि वे सत्ता में आने के बाद उनके हितों की रक्षा करेंगे, लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा हो नहीं पाता।

होता यह है कि एक अनुपयुक्त व्यक्ति सत्ता में आ जाता है, जो न तो एक जनप्रतिनिधि होने के योग्य है और न ही इस दायित्व के प्रति प्रतिबद्ध। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उसका चयन इन गुणों के आधार पर किया भी नहीं गया था, उसका चयन इसलिए किया गया था, क्योंकि उसने समाज के वंचित तबकों के मन में उम्मीदें जगाने में सफलता पाई थी।

लेकिन समय गुजरता रहता है और वे समुदाय पहले की तरह वंचित और शोषित ही बने रहते हैं। दूसरी तरफ एक के बाद एक घोटाले होते रहते हैं और भ्रष्टाचार हमारी सामाजिक संस्कृति का एक अंग बन जाता है। देश के जितने अल्पसंख्यक समुदायों को वोट बैंक की राजनीति ने छला है, उनमें मुस्लिम सर्वप्रमुख हैं। कारण स्पष्ट हैं।

मुस्लिम समुदाय देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। उन्हें कई बार दमन और शोषण का शिकार होना पड़ा है। ऐसे में राजनेताओं के लिए उनकी भावनाओं का शोषण करना आसान हो जाता है। लेकिन मैं मुस्लिम समुदाय के अपने भाइयों और साथियों से कहना चाहूंगा कि आपको सबसे ज्यादा उन राजनेताओं ने ही छला है, जिन्होंने आपसे बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन आपकी स्थिति सुधारने के लिए कोई वास्तविक प्रयास नहीं किए।

हो सकता है उन्होंने कुछ अवसरों पर आपको कुछ सौगातें दी हों, लेकिन उन्होंने आपको हमेशा मूलभूत चीजों से वंचित रखा। उन्होंने कभी एक मजबूत बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं किया। उन्होंने कभी अच्छे स्कूल, कॉलेज या अस्पताल नहीं मुहैया कराए, ताकि देश के नागरिक एक सम्मानपूर्ण जीवन बिता सकें।

वास्तव में उन्होंने हम सभी को छला है। उन्होंने हमारे बीच बैर के बीज बोकर अपनी अक्षमता को छुपा लिया। उन्होंने हमें दंगे-फसादों में उलझाए रखा, जबकि उनके कुप्रशासन का खामियाजा पूरा देश भुगतता रहा। जब एक अच्छे विद्यार्थी को स्कूल या कॉलेज में दाखिला नहीं मिलता तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह हिंदू है या मुस्लिम, क्योंकि यह पूरे देश के लिए एक प्रतिभा की क्षति होती है।

जब सरकारी अस्पताल मरीजों के साथ जानवरों जैसा बर्ताव करते हैं तो यहां मरीज का मजहब कोई मायने नहीं रखता। जब हम महंगाई की मार झेलते हैं और एक कृषिप्रधान देश होने के बावजूद हमारे देशवासियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता तो यह किसी संप्रदाय विशेष के लिए नहीं, पूरे देश के लिए चिंता का विषय है।

समय आ गया है कि हमारे नेता कृत्रिम समस्याएं खड़ी करने के स्थान पर वास्तविक समस्याओं का समाधान खोजना शुरू कर दें। मैं वंचित तबकों से अनुरोध करना चाहूंगा कि वे अपने मत की ताकत समझें और किसी भी राजनीतिक दल के बंधक न बनें।

एक सशक्त जनमत वही है, जो सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को कसौटी पर रखे। हमें अपना वोट केवल उसे देना चाहिए, जो सबसे बेहतर (या सबसे कम बदतर!) हो। हालांकि मेरी इन बातों का यह अर्थ नहीं है कि वंचित और अल्पसंख्यक समुदायों का शोषण नहीं होता।

हमें शोषण की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाने चाहिए। यदि सभी भारतीयों की आंखों में एक विकसित राष्ट्र का साझा सपना हो तो वे अपने आप सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे के अधिक करीब आएंगे। देश के बहुसंख्यक समुदाय को भी ध्यान रखना चाहिए कि वे अल्पसंख्यकों और वंचितों की भावनाओं को आहत न करें।

यकीनन, ऐसी भी स्थितियां आई हैं, जहां बहुसंख्यक समुदाय को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि वे किसी क्षेत्र विशेष में अल्पसंख्यक की श्रेणी में थे, जैसे कश्मीरी पंडित। ऐसी स्थिति में समाज के सभी वर्गो को राष्ट्रीय सौहार्द में अपना योगदान देना चाहिए। सेकुलर होने का यह अर्थ नहीं होता कि हिंदुओं के दृष्टिकोण को पूरी तरह अनदेखा कर दिया जाए।

आज देश एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मोड़ पर है। देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा परिवर्तन की आकांक्षा से भरा हुआ है। इस दौर की मांग है कि तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति और सांप्रदायिक वैमनस्य को अलविदा कह दिया जाए और देश का जनमत एकमत होकर सुप्रशासन के पैमाने पर अपने नेताओं का चयन करे। आखिर यह देश हम सभी का है, किसी एक वर्ग का नहीं।

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