इन दिनों पूरे देश ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में राजकुमार हीरानी की फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ धूम मचा रही है। फिल्म में अनेक गंभीर बातों को हँसी-मजाक के बीच बताया गया है। इसलिए कई लोगों ने इस पर सरलता से ध्यान नहीं दिया। इमोशन और कॉमेडी के रोलर फास्टर में ऐसा होना स्वाभाविक है।
फिल्म में बताया गया है कि परीक्षा के समय विद्यार्थी सुधर जाते हैं। कोई गाय को घास खिलाता है, कोई भगवान को प्रसाद चढ़ाता है, कोई लड़कियों को कभी न छेड़ने की कसम खाता है, कोई भगवान का जाप करने लगता है। हमारी मानसिकता भी इन विद्यार्थियों जैसी है। भले परीक्षा में अंकों के लिए नहीं, वरन् जिंदगी की छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिए भी हम ऐसा ही करते हैं। पर हमने कभी सोचा है कि ऊपरवाला (केवल इस व्याख्या में सभी धर्मो का समावेश किया जा सकता है) इतना ही घमंडी होता, तो हमारे द्वारा की जाने वाली पूजा-पाठ, जाप या स्तुति से ही खुश हो जाता, तो वे इंसान नहीं, बल्कि रोबोट बनाते। जो २४ घंटे केवल उसे याद करने में ही लगाते। जिसके ऐश्वर्य का कोई पार नहीं, उसे हम केवल दस रुपए के एक नारियल से ही खुश करने चले हैं। क्या वे इस नारियल या हमारी स्तुति के भूखे हैं? इसका जवाब शायद ना हो, परन्तु हाँ भी नहीं हो सकता।
इसी तरह फिल्म में दूसरा प्रहार हमारी मानसिकता पर है। शिक्षक दिवस पर जब साइलेंसर स्टेज से बोलना शुरू करता है। तब बोमन इरानी उसे रोकना चाहते हैं। पर शिक्षा मंत्री उनका हाथ पकड़कर रोक देते हैं। तब तक वे साइलेंसर की बातों का खूब मजा लेते हैं। पर जब साइलेंसर मंत्रियों के खिलाफ बोलना शुरू करता है, तब शिक्षा मंत्री नाराज हो जाते हैं। हमारे राजनेता ऐसे ही हैं, जब तक दूसरों पर कीचड़ उछलते रहता है, तब तक वे कुछ नहीं कहते, बल्कि मजे लेते हैं। बात जब स्वयं पर आती है, तब सारा दोष दूसरों पर डालते दिखाई देते हैं। हम राजनेताओं को क्यों दोष दें, हम भी किसी से कम नहीं हैं। किसी भी मामले पर हम भी ऐसा ही करते हैं। दूसरे पर बीतती है, तब हम तमाशा देखते हैं। वही विपदा हम पर आती है, तो हम आकाश सिर पर उठा लेते हैं। हम अपेक्षा करते हैं कि कोई हमारी सहायता के लिए आगे आए। आखिर दूसरों के लिए भी हम तो पराए ही हैं।
तीसरा महत्वपूर्ण प्रहार फिल्म के शुरू से अंत तक है, जिसमें दो दोस्त अपने एक जिगरी दोस्त को ढँूढ़ने निकलते हैं। हमने कभी शांत बैठकर विार किया है कि आज हमारे तमाम मित्र क्या कर रहे हैं? जिसकी बाइक पर बैठकर कॉलेज जाते थे, जिसके घर जाकर पढ़ते थे, चुपके-चुपके उसके साथ सिगरेट पीते थे। यह भी संभव है कि किसी मित्र हो हमने वेलेंटाइन डे पर प्रपोज करने के लिए उत्साहित किया हो। या फिर उसे हिम्मत दी हो। इसके बाद भी वह प्रपोज करने में विफल हो जाता हो। वह युवती आज कहाँ है, किस हालत में है, शायद उसकी शादी हो गई हो, संभव है माँ भी बन चुकी हो।
कॉलेज छोड़ने के बाद क्या हम एक बार भी वहाँ गए हैं? वहाँ के किसी उत्सव में शामिल हुए हैं? हमेशा सम्पर्क में रहने का वचन तो दे दिया, पर क्या उसका पालन कर पाए? जिंदगी में धन के पीछे भागने में ही इतना वक्त गुÊार गया कि अपने मित्रों को ही भूल गए? फिल्म में फरहान और राजू तो अपने दोस्त रणछोड़ दास श्यामल दास चांचड़ को खोजने निकल ही गए, पर आपने अपने किस मित्र के लिए इस तरह की जहमत उठाई? आज अपने मित्रों की जानकारी के लिए कई तरह के संसाधन आ गए हैं। ट्विटर,द आरकूट या फेसबुक जैसी अनेक वेबसाइट्स हैं, जहाँ जाकर आप अपने मित्रों को ढ़ँढ सकते हैं। इंटरनेट पर जब आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, तब किसकी राह देखनी है, सर्च करो और तलाश लो अपने मित्रों को।