जावेद अख्तर की रचनाएँ (फिल्म “ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा” से ली गयी पंक्तियाँ..)

1. दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम,
नज़र में ख़्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम,
हवा के झोंकों के जैसे आज़ाद रहना सीखो,
तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो,
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोल के अपनी बाहें,
हर एक पल एक नया समाँ देखें ये निगाहें,
जो अपनी आँखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम,
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तो जिंदा हो तुम…

2. पिघले नीलम सा बहता ये समाँ,
नीली-नीली सी खामोशियाँ,
न कहीं है ज़मीन,न कहीं है आसमान,
सरसराती हुई टहनियां,पत्तियाँ,
कह रहीं हैं बस एक तुम हो यहाँ,
बस एक मैं हूँ,मेरी सांसें हैं,मेरी धडकनें,
ऐसी गहराइयाँ,ऐसी तनहाइयाँ,और मैं सिर्फ मैं,
अपने होने पे मुझको यकीन आ गया…

3. जब जब दर्द का बादल छाया,
जब ग़म का साया लहराया,
जब आंसूं पलकों तक आया,
जब ये तनहा दिल घबराया,
हमने दिल को ये समझाया,
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है,
दुनिया में यूँ ही होता है,
ये जो गहरे सन्नाटे हैं,
वक़्त ने सबको ही बांटें हैं,
थोडा ग़म है सबका किस्सा,
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा,
आँख तेरी बेकार ही नम है,
हर पल एक नया मौसम है,
क्यूँ तू ऐसे पल खोता है,
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है…

4. एक बात होठों तक है जो आई नहीं,
बस आँखों से है झांकती,
तुमसे कभी,मुझसे कभी
कुछ लफ्ज़ है वो माँगती,
जिनको पहनके होठों तक आ जाए वो,
आवाज़ की बाहों में बाहें डालके इठलाये वो,
लेकिन जो ये इक बात है,
एहसास ही एहसास है,
खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती,
खुशबू जो बे-आवाज़ है,
जिसका पता तुमको भी है,
जिसकी खबर मुझको भी है,
दुनिया से भी छिपता नहीं,
यह जाने कैसा राज़ है….

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