उधार की ज़िन्दगी….


जी रहे हैं सभी यहाँ,
इक उधार की ज़िन्दगी
खूंटे पे टंगे उस पुराने कोट की तरह,
तार-तार सी ज़िन्दगी

उम्मीदों के बादल पर सवार,
मगर सपनों की बारिश कि आस नहीं दिल में,
ऐसी जी रहे हैं सभी,
बिना ऐतबार की ज़िन्दगी,

खुदा से आस लगाये हुए,
मगर भरोसे के दीपक को बुझा,
हर कोई जी रहा है अपनी ज़िन्दगी,
जैसे हो ये उधार की ज़िन्दगी,

कहता हूँ मैं यारों,अगर जीना ही है ज़िन्दगी को,
तो जियो खुल के,मस्त हो के,
हर पल का मज़ा लो,और मनाओ शुक्र,
की तुम्हारे पास है एक अनमोल रतन,
जिसे कहता हूँ मैं,परवरदिगार की ज़िन्दगी..

बिना मौत के खौफ़ के,
बिना हार के डर के,
जियो जैसे हर पल का ले रहे हो मज़ा,
और बना दो एक हसीं ख्वाब अपनी ज़िन्दगी…


कवि:-मोहित कुमार जैन
०३-०६-२०११

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