उदासी

सुहानी शाम का ये मंज़र उदास लगता है,
की तुम्हारे बिना ये शहर उदास लगता है,
जबसे जुदा हुए हो तुम मुझसे ए हमसफ़र,
मुझे साँसों का यह सफ़र उदास लगता है,
तुम थे तो रौनकें भी थी और बहारें भी,
तुम्हारे बाद तो अपना घर भी उदास लगता है,
यह कैसा वक़्त आया है ज़िन्दगी में हमारी,
की अपनी ही दुआओं का असर भी उदास लगता है,
मंजिल कैसे मिलेगी बगैर हमसफ़र के मुझे,
रास्ते गुम हैं और हर पल उदास लगता है,
अजीब वीरानी छाई है तेरे बाद नगर पर,
की फूल तो फूल,यहाँ तो पत्थर भी उदास लगता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *