अच्छा लगता है…

अच्छा लगता है,जब तुम तारीफ करते हो मेरी,
जब तुम्हे यद् रहती है हमारी शादी की सालगिरह,
जब तुम यूँ ही बिना किसी वजह के फ़ोन करते हो,
या फिर जब तुम कभी मुझे यूँ ही चुपचाप देखते हो,
यह सोचकर कि मैं नहीं देख रही तुम्हे देखते हुए

अच्छा लगता है जब तुम ट्रेन में,
खिड़की वाली सीट मेरे लिए छोड़ देते हो,
या कभी जब तुम मेरे माथे पर आई लट सँवार देते हो

अच्छा लगता है जब रात को छोटू के रोने पर,
तुम उसे बाहों में लेकर छत पर टहलते हो,यह सोचकर,
कि मुझे पता नहीं चल सके,अपने अंश कि पीड़ा और अपने साथी के त्याग का

अच्छा लगता है जब तुम सन्डे को किचन में मेरा हाथ बँटाते हो,
या फिर शौपिंग करते हुए मेरी राय लेने के लिए मुझे देखते हो

अच्छा लगता है जब तुम ज़िन्दगी के हर छोटे बड़े फैसले में,
मुझे भी शामिल करते हो,
और एक अच्छे पति,अच्छे पिता,और एक अच्छे इंसान
कि ज़िम्मेदारी हर मोड़ पर बखूबी निभाते हो

अच्छा लगता है जब शाम को घर आने के बाद भी,
तुम फिल्म जाने के लिए तैयार रहते हो,
या फिर जब मेरे जन्मदिन पर तुम मुझे,
अपनी लिखी हुई कविता सुनाते हुए गुलाब का फूल देते हो

अच्छा लगता है जब तुम्हे पति के रूप में पाने,
पर लोग मेरी किस्मत की तारीफ करते है,
या फिर जब तुम सबके सामने कहते हो,
की हम तो ऐसे आशिक हैं जो अपनी संगिनी की हर धड़कन और उसकी साँसों में रहते हैं,

अच्छा लगता है,यह सब बहुत अच्छा लगता है….


कवि:-मोहित कुमार जैन
(२००६)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *