शायरी(२८-०२-२०१४)

हर दुआ क़ुबूल नहीं होती,
और हर आरज़ू पूरी नहीं होती,
जिसके दिल में “आप” जैसा मेहबूब रहता हो,
उसके लिए धड़कन भी ज़रूरी नहीं होती…

जिस दिन से जुड़ा हमसे वो हुए,
इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया,
है चाँद का मुँह भी कुछ उतरा सा,
तारों ने भी चमकना छोड़ दिया…

हर बात का जवाब इंकार नहीं होता,
हर जगह रुकना इंतज़ार नहीं होता,
यूँ तो मिलती हैं हज़ारों से रोज़ नज़रें,
हर नज़र का मिलना मगर प्यार नहीं होता…

क्यूँ इतना याद आती हो तुम,
दिल को क्यूँ इतना तड़पाती हो तुम,
आज भी उतना याद आती हो तुम,
कि इन आँखों में आँसू दे जाती हो तुम,
यूँ छोड़ जाना था तो ज़िन्दगी में आयी थी तुम क्यूँ,
जीते जी मौत कि सज़ा दे गयी हो तुम…

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