जब लक्ष्य के लिए निकलें तो अपनी शक्ति को इस तरह मजबूत करें

महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था। कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडव दोनों की सेनाएं पहुंच गई थीं। युद्ध के पहले वाली रात हर योद्धा पर भारी थी। सभी सुबह होने का इंतजार कर रहे थे। कोई वीर अपनी तलवार को धार दे रहा था, कोई बाणों को तीखा बनाने में जुटा था।

हर कोई उस घड़ी के इंतजार में था जब युद्ध शुरू होना था। भगवान कृष्ण और अर्जुन भी अपने-अपने शिविरों के बाहर टहल रहे थे। युद्ध का रोमांच तो था कि चिंता की लकीरें भी थीं। दोनों पक्षों की सेना में भारी अंतर था। कौरवों की सेना पांडव सेना से कहीं ज्यादा थी।

अर्जुन भी चिंता में था। वह कृष्ण के पास पहुंचा। अर्जुन ने कृष्ण से युद्ध को लेकर बातें कीं। कृष्ण उसकी मन:स्थिति को समझ गए। उन्होंने अर्जुन से कहा कि हे पार्थ तुम चिंता छोड़ो और शक्ति यानी देवी का ध्यान करो। तुम्हें इस समय अपनी शक्ति को केंद्रित रखना चाहिए।

कृष्ण ने अर्जुन को चिंता छोड़ ध्यान करने की सलाह दी। अपने भीतर मौजूद शक्ति और सामथ्र्य को एकत्रकर उसी पर टिकने का सुझाव दिया। अर्जुन ने ध्यान लगाया। उसे शक्ति के दर्शन हुए। मन से दुविधा और चिंता मिट गई।

कृष्ण संदेश दे रहे हैं कि जब भी आप लक्ष्य के निकट हों, युद्ध के मुहाने पर खड़े हों तो चिंता की बजाय चिंतन और ध्यान पर अपना मन केंद्रित करना चाहिए। लक्ष्य के पहले मन में आई चिंता आपको पराजय की ओर मोड़ सकती है। शक्ति कम भी हो तो उसे एकत्रकर पूरे मनोयोग से जुट जाएं।

ये शक्ति ही आपकी विजय के लिए पर्याप्त होगी। अगर हम हमारी पूरी शक्ति के साथ प्रयास नहीं करेंगे तो संभव है कि हम किसी भी अवसर को अपने पक्ष में नहीं कर पाएंगे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *