कुछ हिंदी शायरियाँ………

1.दोस्ती की अनदेखी सूरत हो तुम,
किसी की ज़िन्दगी की ज़रुरत हो तुम,
खूबसूरत तो फूल भी बहुत होते हैं,
पर किसी के लिए फूल से भी खूबसूरत हो तुम..

2.ज़रा शिद्दत से तारे तोड़ने की ज़िद तो ठानो तुम,
अगर किस्मत नहीं आई तो मेहनत काम आएगी…..

3.लोग इश्क को खुदा कहते हैं,
मगर कोई इश्क करे तो उसे गुनाह कहते हैं,
कहते हैं पत्थर दिल रोया नहीं करते,
तो फिर पत्थरों से ही क्यूँ झरने बहा करते हैं…

4.जो है लाजवाब उसे क्या जवाब दूं,
प्यार का अपने उसे कैसे हिसाब दूं,
सोच तो रहा हूँ की दे दूं उसे एक फूल,
मगर जो खुद ही एक गुलाब हो,उसे क्या गुलाब दूं…

5.काटे नहीं कटते हैं लम्हे इंतज़ार के,
नज़रें जमा के बैठे हैं रस्ते पे यार के,
दिल ने कहा जो देखे जलवे हुस्न-ए-यार के,
लाया है कौन इन्हें फलक से उतार के….

6.ज़ख्म इतने गहरे हैं कि इज़हार क्या करें,
हम खुद ही निशाना बन गए वार क्या करें,
सो गए हम मगर खुली रही आँखें,
अब इस से ज्यादा उनका इंतज़ार क्या करें…

7.उनके लिए एक पैग़ाम लिखते हैं,
साथ गुजरी बातें तमाम लिखते हैं,
दीवानी हो जाती है वो कलम भी,
जिस कलम से हम उनका नाम लिखते है……

8.तुम्हारी किसी अदा को अगर चुरा लूं तो क्या करोगी,
तुम्हे छिप-छिप कर अगर देखूं तो क्या करोगी,
दिन के उजाले में शायद कुछ कह भी दो मुझको,
मगर रातों को नींदों में ख्वाब बनके आऊं तो क्या करोगी..

9. रोज़ाना सुबह और शाम देखा है,
तुम्हारी आँखों में एक पैग़ाम देखा है,
तुम इकरार-ए-मोहब्बत करो न करो,
मगर तुम्हारी हथेली पर “हिना” से लिखा अपना नाम देखा है….

10.मेरी मोहब्बत मेरी खता बन गयी,
ये ही दीवानगी मेरी सजा बन गयी,
उनकी मासूमियत पर फ़िदा हुआ ऐसे,
कि उन्हें पाना ही ज़िन्दगी कि रज़ा बन गयी….

11.घर से बाहर वो नकाब में निकली,
सारी गली उनकी फ़िराक में निकली,
इनकार करते हैं वो हमारी मोहब्बत से,
और हमारी ही तस्वीर उनकी किताब से निकली….

12.हमारे आंसू पौंछकर वो मुस्कुराते हैं,
इसी अदा से वो दिल को चुराते हैं,
हाथ उनका कभी छू जाए हमारे चेहरे को,
बस इसी उम्मीद से हम खुद को रुलाते हैं…

13.नज़र ने नज़र से मुलाक़ात कर ली,
रहे दोनों खामोश मगर बात कर ली,
सर-ए-बज़्म उन्होंने हमारे अलावा,
इधर बात कर ली,
उधर बात कर ली..

14.कहीं अँधेरा तो कहीं शाम होगी,
हमारी हर ख़ुशी आपके नाम होगी,
कुछ मांग करके तो देखिये हमसे,
होठों पे हँसी और हथेली पर जान होगी…..

15.दाग ग़म का दिल से मिटाया न गया,
हमने लाख चाहा पर भुलाया न गया,
रूठने वालों से कोई यह पूछे,
कि वो खुद रूठे या हमसे मनाया ना गया….

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *